मुसलमानों के बारे में पीएम मोदी के बयान पर अंतरराष्ट्रीय मीडिया में हलचल
सत्ताधारी बीजेपी लगातार तीसरी बार सत्ता में आने के लिए अपना पूरा दमख़म लगा रही है, तो वहीं कांग्रेस भी एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाए हुए है. ऐसे में नेताओं के भाषण, उनके दावे और दूसरी पार्टी के नेताओं को लेकर दिए बयान रोज़ अख़बारों की सुर्खियां बन रहे हैं. लेकिन पहले चरण के मतदान के बाद प्रधानमंत्री का दिया एक भाषण विशेष रूप से चर्चा का विषय बना हुआ. भारतीय मीडिया के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भी इसे अपने पन्नों पर जगह दी है.
इस्तेमाल किए गए कुछ ख़ास शब्दों के कारण ये भाषण चुनाव आयोग में पीएम मोदी की शिकायत का कारण भी बना है. कांग्रेस नेताओं ने इसे लेकर चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज कराई है और कहा है कि प्रधानमंत्री देश में नफ़रत के बीज बो रहे हैं.
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, "हमने जनप्रतिनिधि क़ानून, सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसलों और चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन वाली 16 शिकायतें चुनाव आयोग को सौंपी है."
पंजाब में बीजेपी की सहयोगी रही शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने भी इसकी आलोचना की है. उन्होंने कहा, "प्रधानमंत्री और भाजपा को सरदार प्रकाश सिंह बादल से सीखना चाहिए कि कैसे शांति और सांप्रदायिक समन्वय सुनिश्चित हो."
19 अप्रैल को पहले चरण की वोटिंग ख़त्म हुई. इसके बाद 21 अप्रैल को राजस्थान के बांसवाड़ा में चुनावी रैली में दिए एक भाषण में बीजेपी नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के एक पुराने भाषण का हवाला दिया और मुसलमानों पर टिप्पणी की. पीएम मोदी ने अपने भाषण में समुदाय विशेष के लिए 'घुसपैठिए' और 'ज़्यादा बच्चे पैदा करने वाला' जैसी बातें कहीं. अपने भाषण में मोदी ने कहा, "पहले जब उनकी सरकार थी तब उन्होंने कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है, इसका मतलब ये संपत्ति इकट्ठा करके किसको बांटेंगे- जिनके ज़्यादा बच्चे हैं उनको बांटेंगे, घुसपैठियों को बांटेंगे. क्या आपकी मेहनत का पैसा घुसपैठियों को दिया जाएगा? आपको मंज़ूर है ये?"
मोदी ने कहा, "ये कांग्रेस का मैनिफेस्टो कह रहा है कि वो मां-बहनों के सोने का हिसाब करेंगे, उसकी जानकारी लेंगे और फिर उसे बांट देंगे और उनको बांटेंगे जिनको मनमोहन सिंह की सरकार ने कहा था कि संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है. भाइयों बहनों ये अर्बन नक्सल की सोच, मेरी मां-बहनों ये आपका मंगलसूत्र भी बचने नहीं देंगे, ये यहां तक जाएंगे."
हालांकि पीएम मोदी ने मनमोहन सिंह के जिस 18 साल पुराने भाषण का ज़िक्र किया है, उसमें मनमोहन सिंह ने मुसलमानों को पहला हक़ देने की बात नहीं कही थी.
मनमोहन सिंह ने साल 2006 में कहा था, "अनुसूचित जातियों और जनजातियों को पुनर्जीवित करने की ज़रूरत है. हमें नई योजनाएं लाकर ये सुनिश्चित करना होगा कि अल्पसंख्यकों का और ख़ासकर मुसलमानों का भी उत्थान हो सके, विकास का फायदा मिल सके. इन सभी का संसाधनों पर पहला दावा होना चाहिए."
अमेरिकी अख़बार 'वॉशिंगटन पोस्ट' ने 22 अप्रैल को इसे लेकर 'मोदी पर चुनावी रैली में मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रती भाषण देने का आरोप' शीर्षक से रिपोर्ट अपनी वेबसाइट पर छापी.
वेबसाइट ने प्रधानमंत्री के भाषण को जगह दी और उस पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया को भी अपनी रिपोर्ट में लिखा. 'वॉशिंगटन पोस्ट' ने लिखा कि कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने सोमवार को कहा कि पार्टी ने इसे लेकर सोमवार 22 अप्रैल को चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज कराई है.
वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा है कि बांसवाड़ा में दिए भाषण के बाद 22 अप्रैल को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में मोदी ने इसी तरह का एक और भाषण दिया.
इस रिपोर्ट में भारत के नागरिकता क़ानून का भी ज़िक्र किया गया है. लिखा गया है कि इस क़ानून को लागू करने को लेकर देश में विवाद भी हुआ था. इस क़ानून की ये कह कर आलोचना की गई कि इसमें धर्म के आधार पर नागरिकता देने की बात की गई है जो देश की धर्मनिरपेक्षता के मूलभूत सिद्धांतों से अलग है.
चीनी न्यूज़ वेबसाइट 'साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट' ने लिखा कि चुनावों में बढ़त हासिल करने के लिए मोदी ने मुस्लिम विरोधी बयानबाज़ी शुरू की.
वेबसाइट ने लिखा कि बीजेपी की उम्मीद के अनुरूप प्रदर्शन न होने के दावों के बीच पीएम मोदी एक बार फिर चुनावी रैलियों में धर्म का इस्तेमाल कर रहे हैं और उन्होंने भारत के मुसलमानों पर बयानबाज़ी तेज़ कर दी है. उनके बयानों से चुनाव के मानकों यानी आचार संहिता के उल्लंघन होने की चिंता जताई जा रही है.
'साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट' ने दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में एसोशिएट प्रोफ़ेसर अजय गुडावर्ती के हवाले से लिखा है, "लोग अब ऊब चुके हैं, हिंदू-मुसलमान का मुद्दा अब ज़मीन पर ज़्यादा असर नहीं दिखा रहा है."
राजनीतिक विश्लेषक अपूर्वानंद के हवाले से वेबसाइट ने लिखा है कि "मुसलमानों के ख़िलाफ़ सांप्रदायिक नफ़रती भावनाओं को भड़काने के मामले में मोदी आदतन दोषी हैं."
वो कहते हैं कि "चुनाव प्रचार की शुरुआत से ही वो मुसलमान विरोधी बयान दे रहे हैं, लेकिन मीडिया अब तक इसे दिखा नहीं रहा था."
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि यूपी में एक भाषण में उन्होंने कहा था कि मुसलमानों के कारण हिंदुओं को घर छोड़ना पड़ रहा है, कांग्रेस के मेनिफेस्टो को लेकर उन्होंने कहा था कि "इसका हर पन्ना देश के टुकड़े-टुकड़े करने" की बात करता है.
'टाइम' मैगज़ीन ने भी इस ख़बर को जगह दी है. पत्रिका ने लिखा है कि भारत की आबादी 1.44 अरब है और मोदी की बीजेपी की आलोचना मुसलमान समुदाय को बाहर से आए विदेशियों के रूप में देखने के लिए होती रही है, इनमें पड़ोसी बांग्लादेश और म्यांमार से आए मुसलमान शामिल हैं.
आलोचक कहते हैं कि मोदी की टिप्पणी का आधार विभाजनकारी हिंदू राष्ट्रवाद है जिसके तार सत्ताधारी बीजेपी से जुड़े हैं. पत्रिका ने लिखा है पार्टी तीसरी बार सरकार बनाने का दावा कर रही है.
पत्रिका ने अमेरिका में मुसलमानों के अधिकारों के लिए काम करने वाले समूह 'काउंसिल ऑफ़ अमेरिकन इस्लामिक रिलेशंस' (सीएआईआर) के एक बयान को अपनी रिपोर्ट में जगह दी है जिसमें मोदी के भाषण की आलोचना की गई है.
सीएआईआर ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से गुज़ारिश की है कि मुसलमानों और अल्पसंख्यक समूहों के साथ सुनियोजित तरीके से हो रहे व्यवहार के लिए भारत को "कंट्री ऑफ़ पर्टिकुलर कंसर्न" यानी 'चिंताजनक देशों की सूची' में शामिल किया जाए.
पत्रिका ने लिखा है कि साल 2002 में हुए गुजरात दंगों के दौरान नरेंद्र मोदी की सरकार प्रदेश में थी. बाद में 2005 में अमेरिका ने उनके देश में एंट्री लेने पर रोक लगा दी थी.
पत्रिका ने वॉशिंगटन में मौजूद रिसर्च ग्रुप 'इंडिया हेट लैब' के आंकड़े भी अपनी रिपोर्ट में दिए हैं. ये ग्रुप भारत के धार्मिक अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हुए नफ़रती भाषण का लेखा-जोखा रखता है.
इस रिपोर्ट के अनुसार, साल 2023 में देश में इस तरह के 668 मामले दर्ज किए गए थे, इनमें से 255 मामले 2023 के पहले छह महीनों में सामने आए थे. साल के अगले छह महीनों में इस तरह के 413 मामले सामने आए जो पहले के छह महीनों के मुक़ाबले 63 फ़ीसदी अधिक था.
न्यूयॉर्क टाइम्स ने इस पर 23 अप्रैल को रिपोर्ट छापी है. वेबसाइट ने जिस शीर्षक के साथ रिपोर्ट छापी वो है- मोदी ने भारत के मुसलमानों को 'घुसपैठिया' क्यों कहा? क्योंकि वो ऐसा कर सकते थे.
न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है कि अपनी सत्ता को सुरक्षित मानकर पीएम मोदी आर्थिक और कूटनीतिक स्तर पर देश के विकास को लेकर वैश्विक नेता के तौर पर खुद को पेश कर रहे थे. ऐसा करके वो पार्टी के प्रचलित विभाजनकारी रवैये से खुद को अलग रखे हुए थे.
इस तरह के मामलों में उनकी चुप्पी थी. इस बीच कट्टरपंथ सोच वाले समूह गै़र हिंदू समुदायों को निशाना बना रहे थे और उनकी अपनी पार्टी के सदस्य संसद में नस्लीय और नफ़रती शब्दों का इस्तेमाल कर रहे थे.
देश के भीतर वो लंबे समय तक ये सुनिश्चित कर सकते थे कि हो रही घटनाओं से वो दूरी बनाए रखें, साथ ही विदेश में भी अपनी साख बनाए रखें. लेकिन फिर रविवार शाम को उन्होंने एक चुनावी स्पीच देकर मुसलमानों को कथित तौर पर 'घुसपैठिए' कहा जिनके 'अधिक बच्चे' हैं. उनकी ये स्पीच बड़े विवाद का मुद्दा बन गई.
वेबसाइट लिखता है कि देश के भीतर नियामक संस्थाएं बीजेपी की इच्छा के अनुसार काम कर रही हैं और विदेश में भारत के सहयोगी मोदी को लेकर आंखें बंद किए हुए हैं क्योंकि चीन से निपटने के लिए वो भारत को अहम मान रहे हैं.
अमेरिका के इंस्टीट्यूट ऑफ़ पीस के दक्षिण एशिया कर्यक्रम के डेनियल मार्के कहते हैं, "मोदी लंबा अनुभव रखने वाले और मंझे हुए नेता हैं. अगर उन्हें इस बात का यकीन है कि वो बच नहीं सकेंगे तो वो इस तरह की टिप्पणी कभी नहीं करेंगे."
हालांकि वो ये भी कहते हैं कि अमेरिकी राजनेताओं के मामले में मोदी की आलोचना का उलटा असर पड़ सकता है जो "अमेरिका में रहने वाले भारतीय समुदाय की नाराज़गी नहीं झेलना चाहेंगे."
न्यूयॉर्क टाइम्स लिखता है कि 1925 में बने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मिशन भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना था. राजनीति में आने से पहले मोदी दशक भर तक इसी संघ का हिस्सा रहे थे. विभाजन के वक्त दो राष्ट्र बनने को लेकर भारत की सहमति को ये संगठन देशद्रोह मानता है.
मध्य पूर्व से चलने वाले मीडिया आउटलेट अल जज़ीरा ने 22 अप्रैल को इसे लेकर एक विस्तृत ख़बर पब्लिश की है जिसमें कहा गया है कि प्रधानमंत्री के एक विवादित भाषण के बाद उन पर मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने के आरोप लगाए जा रहे हैं.
अल जज़ीरा ने लिखा है कि स्थानीय चुनाव अधिकारियों ने पुष्टि की है कि उन्हें मोदी के भाषण से जुड़ी दो शिकायतें मिली हैं जिसमें उनके चुनाव प्रचार को रद्द करने और उनकी गिरफ्तारी की मांग की गई है.
एक राजनीतिक विश्लेषक असीम अली के हवाले से वेबसाइट ने लिखा है कि मोदी की टिप्पणी "देश के हाल के इतिहास में किसी मौजूदा प्रधानमंत्री द्वारा दिया गया सबसे भड़काऊ भाषण है."
उनका कहना था कि इस भाषण के साथ चुनावी खेल में अब बड़ा बदलाव आ गया है.
एक और राजनीतिक विश्लेषक ज़याद मसरूर ख़ान के हवाले से वेबसाइट ने लिखा कि "पीएम कह सकते हैं कि उनका निशाना कांग्रेस पर था लेकिन आख़िर में ये मुसलमानों को लेकर इस रूढ़िवादी सोच को बढ़ाएगा कि वो समस्या हैं."
अल जज़ीरा ने इस पर एक वीडियो भी बनाया है जिसमें मोदी के भाषण के साथ-साथ उस पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया को जगह दी गई है.
वीडियो में कहा गया कि हज़ारों लोगों ने उनके इस भाषण को लेकर चुनाव आयोग को पत्र लिखा है.
वीडियो में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के एक पुराने भाषण का अंश भी इसमें शामिल किया गया है. मनमोहन सिंह ने साल 2006 में राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) की बैठक में ये भाषण दिया था.
फैक्ट चेकर सिद्धार्थ शरत के हवाले से अल जज़ीरा ने कहा है कि पूर्व पीएम अपने भाषण में केवल मुसलमानों की नहीं बल्कि सभी वंचित तबकों की बात करते हैं.
वीडियो में बीजेपी के इन आरोपों से इनकार की बात की भी ज़िक्र गया है.
बीजेपी प्रवक्ता मोहन कृष्ण कहते हैं, "पार्टी अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक के बीच भेदभाव नहीं करती. एक भारतीय हमारे लिए केवल एक भारतीय है."
तुर्की से चलने वाले टीआरटी वर्ल्ड ने इस हेडलाइन के साथ रिपोर्ट छापी है कि "वोट की तलाश में मोदी ने मुसलमानों को 'घुसपैठिए' कहा जिसके बाद नाराज़गी देखी जा रही है.
वेबसाइट के अनुसार, मोदी की दक्षिणपंथी पार्टी के प्रवक्ता ने उनकी टिप्पणी का बचाव करते हुए कहा कि उन्होंने "वही कहा जो सही है."
वहीं, कांग्रेस ने इसे चुनावी भाषण में "खुले तौर पर" अल्पसंख्यक मुसलमानों को "निशाना बनाने की कोशिश" करार दिया है.
चुनाव आयोग को दी अपनी शिकायत में कांग्रेस ने इसे "विभाजनकारी, आपत्तिजनक और दुर्भावनापूर्ण" कहा है जिसमें "एक ख़ास धार्मिक समुदाय को निशाना बनाया गया है." पार्टी ने इसे आचार संहिता का खुला उल्लंघन कहा है.
अपनी रिपोर्ट में टीआरटी ने लिखा है कि मोदी ने अपने भाषण में पहले की सरकार में पीएम रहे मनमोहन सिंह के एक पुराने भाषण का ज़िक्र किया और ग़लत दावा किया कि पूर्व पीएम ने कहा था कि "देश की संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है."
टीआरटी ने लिखा है, "सितंबर, 1950 में जन्मे मोदी अपने छह भाई बहनों में तीसरे थे. इसके बाद भी उनकी सत्ताधारी बीजेपी ये ग़लत दावा करती रही है कि मुसलमानों में बच्चा पैदा करने की दर अधिक है."
रिपोर्ट में आगे लिखा है कि बीजेपी और उसके साथ की अन्य दक्षिणपंथी पार्टियां ये दावा करती रही हैं कि भारतीय मुसलमान अधिक बच्चे पैदा करते हैं और जल्द उनकी आबादी बहुसंख्यक हिंदुओं से अधिक हो जाएगी.
टीआरटी की रिपोर्ट में लिखा गया है कि जानकार मोदी के एक बार फिर सत्ता में आने की उम्मीद कर रहे हैं. इसकी वजहों को गिनाते हुए वेबसाइट लिखता है- पहला तो ये बीजेपी के विरोधियों ने अब तक पीएम पद के अपने दावेदारी के नाम का एलान नहीं किया है, दूसरा ये कि उनके कई विरोधियों के ख़िलाफ़ आपराधिक जांच चल रही है और तीसरा ये कि टैक्स जांच मामले में कांग्रेस के बैंक अकाउंट फ्रीज़ कर दिए गए हैं.
(Note : Except heading this story has not been edited by ismatimes staff. It is being published only for awareness purposes).
Courtesy : BBC