मशहूर शायर मुनव्वर राणा (Munawwar Rana) का लखनऊ पीजीआई में निधन

"जिस्म पर मिट्टी मलेंगे पाक हो जाएँगे हम ऐ ज़मीं इक दिन तेरी ख़ूराक हो जाएँगे हम"

मशहूर शायर मुनव्वर राणा (Munawwar Rana) का लखनऊ पीजीआई में निधन
Famous poet Munawwar Rana passes away

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है मां बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है

Lucknow, 15 January, 2024 : jदुनिया के बड़े मशहूर शायर मुनव्वर राणा का लखनऊ पीजीआई में निधन दिनांक 14 जनवरी 2024 को 71 साल की उम्र में उनका इंतकाल हो गया. वे काफी दिनों से बीमार थे जिसके चलते उन्हें लखनऊ पीजीआई में भर्ती कराया गया था. वे मां पर लिखी शायरियों से काफी मशहूर रहे हैं. जानकर सूत्रों के अनुसार मुनव्वर राणा मुनव्वर को लंबे समय से किडनी की परेशानी थी और लंबे समय से डायलिसिस करवा रहे थे.

सुमैया राणा, मुनव्वर राणा की बेटी से मीडिया में यह ख़बर आयी कि उनके वालिद (पिता) का  लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में निधन हो गया है और सोमवार को उनको स‍िपुर्दे-ए-खाक किया जाएगा. उनके परिवार में उनकी पत्नी, चार बेटियां और एक बेटा है.

मुनव्वर राणा का परिचय:

मुनव्वर का जन्म 26 नवंबर 1952 को उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में हुआ था. 2014 में उन्हें उनकी लिखी कविता शाहदाबा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया था. मुनव्वर भले ही उत्तर प्रदेश में जन्मे थे, लेकिन उन्होंने अधिकतर जीवन पश्चिम बंगाल के कोलकाता में बिताया है.

मुनव्वर उर्दू के शायर थे, लेकिन वे अपनी शेरों में अवधी और हिंदी शब्दों का प्रयोग प्रमुखता से करते थे, जिस कारण उन्हें भारतीय लोगों की लोकप्रियता मिली.  मुनव्वर एक उम्दा शैली के शायर थे. उनकी कलम के प्रेम का अधिकांश हिस्सा मां के लिए होता था. उर्दू साहित्य में महारत हासिल करने पर उन्हें 2012 में शहीद शोध संस्थान द्वारा माटी रतन सम्मान से नवाजा गया था.  2014 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिलने के बाद उन्होंने इसे लौटा दिया था और कभी भी सरकार की तरफ से कोई अवार्ड न लेने की कसम खा ली थी.

मशहूर शायर मुनव्वर राणा को उनकी शेरो-शायरी के लिए हमेशा याद किया जाऐगा. पेश है मुनव्वर राणा के कुछ खास शेर…

मुनव्वर राणा के कुछ खास शेर

भुला पाना बहुत मुश्किल है सब कुछ याद रहता है
मोहब्बत करने वाला इस लिए बरबाद रहता है

ज़िंदगी तू कब तलक दर-दर फिराएगी हमें
टूटा-फूटा ही सही घर-बार होना चाहिए

हम कुछ ऐसे तेरे दीदार में खो जाते हैं
जैसे बच्चे भरे बाज़ार में खो जाते हैं

अँधेरे और उजाले की कहानी सिर्फ़ इतनी है
जहाँ महबूब रहता है वहीं महताब रहता है

कभी ख़ुशी से ख़ुशी की तरफ़ नहीं देखा
तुम्हारे बाद किसी की तरफ़ नहीं देखा

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई

मैं इस से पहले कि बिखरूँ इधर उधर हो जाऊँ
मुझे सँभाल ले मुमकिन है दर-ब-दर हो जाऊँ

मसर्रतों के ख़ज़ाने ही कम निकलते हैं
किसी भी सीने को खोलो तो ग़म निकलते हैं

मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता
अब इस से ज़यादा मैं तेरा हो नहीं सकता

मुख़्तसर होते हुए भी ज़िंदगी बढ़ जाएगी
माँ की आँखें चूम लीजे रौशनी बढ़ जाएगी

मैं भुलाना भी नहीं चाहता इसको लेकिन
मुस्तक़िल ज़ख़्म का रहना भी बुरा होता है

उस पेड़ से किसी को शिकायत न थी मगर
ये पेड़ सिर्फ़ बीच में आने से कट गया

आप को चेहरे से भी बीमार होना चाहिए
इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिए

 यहाँ से जाने वाला लौट कर कोई नहीं आया मैं रोता रह गया लेकिन न वापस जा के माँ आई अधूरे रास्ते से लौटना अच्छा नहीं होता बुलाने के लिए दुनिया भी आई तो कहाँ आई"

इस सदी के 2 महान शायर राहत इंदौरी और मुनव्वर राणा अब हमारे बीच नहीं है. इस तरह मौत सबको खा गई और डकार तक न ली, कहती है और और…

-इसमाटाइम्‍स न्‍यूज डेस्‍क