क्या भारत में मुसलमान होना गुनाह है?

देश की जनता से सवाल है की क्या पुलिस को हत्या और भय के लिए जॉब में रखा गया है. क्या पुलिस का काम प्राइवेट एजेंसीज को दिया जा सकता है. इस तरह की नीची सोच और नफरती लोगों को प्रशासन में नहीं रहना चाहिए.

क्या भारत में मुसलमान होना गुनाह है?
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यह घटना 13/10 2023 की रात की है जब महाराष्ट्र के ठाणे विरार के दो युवा अज़ीम सैयद और फ़िरोज़ शैख़ अपनी मोटर साइकिल पर मालेगांव की तरफ़ जा रहे थै. रास्ते में पढ़गा गाँव के पास एक व्यक्ति ने बीच सड़क उनको रोका, नाम पूछा, नाम सुनकर उसने अपनी जेब से पिस्टल निकाली और दोनों को “गोली मार दी.” गोली मारने वाले का नाम सूरज डोकरे है और वह “मुंबई पुलिसकर्मी“ है और फ़िलहाल हिरासत में है.

अज़ीम सैयद की गोली लगने से मौत हो गाई है. फ़िरोज़ का इलाज मुंबई के  एक हॉस्पिटल में जारी है.

 रविवार को गोली लगने से दम तोड़ने वाले अजीम के बड़े भाई वसीम ने कहा. अजीम ने मरने से पहले पडघा पुलिस को अपने बयान में कहा कि उनके रुकने के तुरंत बाद, एक नकाबपोश व्यक्ति उनके करीब आया और उनका नाम पूछा. उनका नाम सुनने के बाद उसने अपनी पतलून में छिपाई पिस्तौल निकाली और उन पर गोलियां चला दीं.

परिजनों ने बताया कि अजीम असलम सैयद और फिरोज रफीक शेख पर कॉन्स्टेबल सूरज देवराम ढोकरे ने तभी गोली चला दी जब उन्हें पता चला कि दोनों व्यक्ति मुस्लिम थे. आरोपियों ने अजीम असलम सैयद की गोली मारकर हत्या कर दी थी, जबकि दूसरे मुस्लिम पीड़ित फिरोज रफीक शेख को हमले के बाद अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था.

हत्यारे पुलिसकर्मी द्वारा गोली मारकर हत्या किए गए मुस्लिम व्यक्ति के परिवार का कहना है कि यह एक घृणा अपराध का मामला है, जो पीड़ित की मुस्लिम पहचान जानने के बाद किया गया, और कोई पैसा या कीमती सामान नहीं लिया गया. पडघा, विरार गोलीबारी के मुस्लिम पीड़ितों के माता-पिता और रिश्तेदार पुलिस की इस थ्योरी को स्वीकार नहीं कर रहे हैं कि हत्यारे पुलिसकर्मी ने मोटरसाइकिल सवार लोगों को लूटने की कोशिश की थी. इसके बजाय, उन्होंने ठाणे ग्रामीण पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों पर #HateCrime के वास्तविक मामले को दबाने का आरोप लगाया है.

देश की जनता से सवाल है की क्या पुलिस को हत्या और भय के लिए जॉब में रखा गया है. क्या पुलिस का काम प्राइवेट एजेंसीज को दिया जा सकता है. इस तरह की नीची सोच और नफरती लोगों को प्रशासन में नहीं रहना चाहिए.  इस तरह के लोग देश और समाज के लिए कलंक हैं. देश किस तरफ जा रहा है.  अभी हाल ही में ट्रैन में रेलवे पुलिस के एक सरफिरे ने भी मुस्लिम पहचान के लोगों की गोली मारकर हत्या की थी. इस तरह की घटनाये किस तरफ इशारा कर रहा है.

मुस्लिम कौम और इंसानियत परस्त संस्थाएं क्या कर रही है. क्या UN  संस्थाएं और रेड क्रॉस सोसाइटी इस तरफ दुनिया का ध्यान करेगी या सब तमाशबीन रहेंगे और अपनी बारी का इंतज़ार करेंगे.

हमारी माँग है केंद्र और राज्य सरकारें इस ओर ध्यान देंगे और इस तरह के नफ़रती लोगों को प्रशासन और अन्य सेवाओं से दूर रखेंगे.