महिलाओं में ऑस्टियोआर्थराइटिस की संभावना ज्यादा
आस्टियोपोरोसिस एक बिना किसी बाहरी लक्षण लगातार बढने वाली बीमारी है, जिसके कारण हड्डियां पतली और कमजोर होने लगती हैं और रजोनिवृत हो चुकी महिलाओं में आमतौर पर यह बीमारी पाई जाती है, लेकिन पुरूषों को भी यह बीमारी हो सकती है, जैसे-जैसे हड्डियां और ज्यादा छिद्रयुक्त और कमजोर होती जाती है, हड्डी टूटने का जोखिम और बढ़ता जाता है.
उमेश कुमार सिंह :
गृहिणी या कामकाजी महिला की भूमिका को निभाना शारीरिक व मानसिक तौर पर बहुत कठिनाई भरा होता है. इससे उसे व्यायाम करने के लिए वक्त नहीं मिल पाता है जब कि यह स्वस्थ जीवनशैली के लिए बेहद अहम है. बतौर एक मां वह अपने परिवार व बच्चों को प्राथमिकता देती है और उस की सेहत पीछे छूट जाती है. पूरा दिन काम करते करते वह यह भूल जाती है कि उसका पूरा शरीर पुरूष से भिन्न है और उसे कुछ अतिरिक्त देखभाल की जरूरत है.
मुंबई स्थित पी डी हिंदुजा हास्पिटल के वरिष्ठ आर्थोपेडिक सर्जन डा. संजय अग्रवाला के अनुसार स्त्रियों के कूल्हे उन के घुटनों के मुकाबले चौड़े होते है और उन के घुटनों के जोड़ उतने सीधे नहीं होते हैं जितने कि पुरूषों के होते हैं इस लिए स्त्री शरीर के अलइानमैंट की वजह से उन के घुटनों में चोट लगने की संभावना बढ़ जाती है. यही नहीं, अनुसंधान दर्शाते हैं कि स्त्री हारमोन ऐस्ट्रोजन उन के कार्टिलेज पर असर डाल सकते हैं. सुबूत बताते हैं कि ऐस्ट्रोजन कार्टिलेज को इंफ्लेमेशन सूजन, जलन से बचाते हैं. इंफ्लेमेशन से ओस्टियोआर्थ्राइटिस हो सकता है. पद्यपि रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं का ऐस्ट्रोजन स्तर नीचे चला जाता है. जिससे उन की हड्डियों की क्षति का जोखिम बढ़ जाता है.
डा.संजय अग्रवाल का कहना है कि औस्टियोआर्थ्राइटिस जोड़ों का एक विकार है, जो लाखों भारतीयों को प्रभावित करता है. इससे हड्डियां कमजोर होती हैं और फ्रैक्चर की संभावना बढ़ जाती है. आस्टियोपोरोसिस एक बिना किसी बाहरी लक्षण लगातार बढने वाली बीमारी है, जिसके कारण हड्डियां पतली और कमजोर होने लगती हैं और रजोनिवृत हो चुकी महिलाओं में आमतौर पर यह बीमारी पाई जाती है, लेकिन पुरूषों को भी यह बीमारी हो सकती है, जैसे-जैसे हड्डियां और ज्यादा छिद्रयुक्त और कमजोर होती जाती है, हड्डी टूटने का जोखिम और बढ़ता जाता है.
इसके कारण अक्सर शुरूआत में कोई लक्षण तब तक नहीं दिखाई देते, जब तक एक बार हड्डी नहीं टूटती. औस्टियोआर्थ्राइटिस के कारण आम तौर पर रीढ़, कूल्हे और कल्हाई की हड्डी टूट जाती है. दो में एक स्त्री और चार पुरूषों में से एक पुरूष को 50 वर्ष से अधिक उम्र में आस्टियोपोरोसिस के कारण फ्रैक्चर हो सकता है.
लक्षण :
आमतौर पर पाए जाने वाले लक्षणों में कूल्हे, हाथ एवं कलाई की हड्डिड्ढयों में दर्द होना, पीठ के निचले हिस्से अथवा कमर में दर्द, कमर का झुक जाना, गर्दन में दर्द, कूल्हे रीढ़, पीठ या कलाई की हड्डिड्ढयों में कभी-कभी बिना गिरे ही फ्रेक्चर होना आदि ओस्टियोपोरोसिस होने का संकेत करते हैं.
निदान :
लक्षणों के आधार पर ओस्टियोपोरोसिस होने का पूर्वानुमान लग जाता है. फिर भी इसका पता अस्थि खनिज घनत्व मापन विधि द्वारा किया जा सकता है.
रक्त जांच कर उसमें किडनी कार्य प्रणाली, कैल्शियम, फोसफोरस, विटामिन डी आदि नापा जाता है.
बोन मिनरल डेंसिटी :
डीएक्सए :
एसएक्सए जैसे टैस्ट किए जाते हैं और समस्या की गंभीरता का पता लगाया जाता है.
अब केस के अनुसार ही उपाय व उपचार सुझाया जाता है. फैक्चर के केसों में हड्डी के डॉक्टरों की अहम भूमिका होती है. लेकिन यह भी समझ लें कि ओस्टियोपोरोसिस का कोई सटीक उपचार नहीं होता है.
युवावस्था से ही सही पोषण और कसरत से अपनी हड्डियों का ख्याल रख कर आप बढ़ती उम्र में भी अपनी हड्डियों को मजबूत बनाए रख सकते हैं और सेहतमंद जिंदगी जी सकते हैं.
कसरत जरूरी :
हड्डियों की सेहत व मजबूती बनाए रखने के लिए शारीरिक रूप से सक्रिय रहना बेहद जरूरी है. अस्थि क्षति से जूझ रहे हैं तो हड्डियों को मजबूती दे सकते है. यहां तक कि अस्थि क्षति की रोकथाम भी कर सकते हैं. चलना व दौडना, नाचना और वजन उठाना हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए विशेषतौर पर फायदेमंद है. तैरना भी अच्छा है. शारीरिक कसरत से हड्डियों पर हलक दबाव पड़ता है और इस किस्म की गतिविधयों से हड्डियां मजबूत बनती है.
सही पोषण :
कुछ ऐसे पोषक तत्व और खाद्यपदार्थ हैं, जो औस्टियोआथ्राइटिस को गंभीर रूप लेने से रोकते हैं. आहार चिकित्सा इस रोग के दर्द व इंफ्लेमेशन को घटाने में मददगार है. अनुसंधानकर्ताओं ने पाया है कि विटामिन सी, डी, ई, ऐंटीऔक्सीडैंट और ओमेगा-3 फैटी ऐसिड्स में औस्टियोआर्थ्राइटिस के विरूद्ध रक्षात्मक गुण् होते हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वे खाद्यपदार्थ, जिन में उच्चस्तरीय परिष्कृत भोज्य शामिल होते हैं जैसे सफेद चावल, सफेद बै्रड, मीठा, सफेद पास्ता और सैचुरेटेड व ट्रांस फैट से भरी चीजें, ओस्टियोआर्थ्राइटिस के विकास का कारण बनते हैं.
औस्टियोआर्थ्राइटिस का उपचार :
घुटनों व कूल्हों के अलावा गरदन, कमर, हाथों के अंगूठों के जोड़, उंगलियों व पैरों के अंगूठों को भी औस्टियोआर्थ्राइटिस प्रभावित करता है. अभी इस मर्ज की मुफीद कोई दवा मौजूद नहीं है पर उपचार से दर्दनाक स्थिति में जाने से बचा जा सकता है. इस विषय पर और अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए डा. संजय अग्रवाल से फोन नं. 022-24447184, 24447173 पर संपर्क किया जा सकता है.