उत्तराखंड लाइसेंसिंग अथॉरिटी ने पतंजलि के भ्रामक विज्ञापनों पर दो साल तक कोई कार्रवाई नहीं की

आयुष मंत्रालय द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफ़नामे से पता चलता है कि उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण पतंजलि के भ्रामक विज्ञापनों के ख़िलाफ़ की गई शिकायतों पर चेतावनी देने और कंपनी को विज्ञापन बंद करने के लिए कहने के अलावा दो साल से अधिक समय तक कोई कार्रवाई नहीं की.

उत्तराखंड लाइसेंसिंग अथॉरिटी ने पतंजलि के भ्रामक विज्ञापनों पर दो साल तक कोई कार्रवाई नहीं की

नई दिल्ली: पतंजलि के भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ की गई शिकायतों पर दो साल से अधिक समय तक कोई कार्रवाई नहीं करने के लिए उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण (एसएलए) ने हाल ही में जो कारण बताया, उसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, एसएलए ने दावा किया था कि चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में था, इसलिए कंपनी के खिलाफ आगे की कार्रवाई अदालत के आदेश/निर्णय के अधीन होगी, जबकि अदालत के आदेश में कहा गया कि इस अदालत ने ऐसे किसी भी कार्रवाई का इंतजार करने का कोई निर्देश जारी नहीं किया है.

इसी बीच, आयुष मंत्रालय ने अदालत में एक हलफनामा दायर किया जिसमें यह कहा गया कि एसएलए ने फरवरी 2022 में दायर एक शिकायत पर चेतावनी देने और कंपनी को विज्ञापन बंद करने के लिए कहने के अलावा कोई कार्रवाई नहीं की, जबकि कंपनी ने पूरे दो सालों तक विज्ञापन देना जारी रखा.

अदालत ने आगे कहा कि भारत सरकार द्वारा राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण को संबोधित दिनांक 08 मार्च, 2024 के पत्र को देखने से उसके जारी होने की तारीख से दो दिनों के भीतर उसके द्वारा की गई विस्तृत कार्रवाई प्रदान करने के लिए कहा गया है. पत्र से पता चलता है कि राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफल रहा है, जैसा कि अधिनियम के तहत अपेक्षित है.

इसमें कहा गया है कि आयुष मंत्रालय को एसएलए के जवाब से पता चलता है कि कंपनी को अभी चेतावनी जारी की गई थी.

नवंबर 2023 में सुनवाई के दौरान पतंजलि ने अदालत को आश्वासन दिया था कि वह ‘औषधीय प्रभावकारिता का दावा करने वाले या चिकित्सा की किसी भी प्रणाली के खिलाफ कोई भ्रामक बयान नहीं देगी.’ हालांकि, कंपनी ने 4 दिसंबर, 2023 और फिर 22 जनवरी, 2024 को इसी तरह के विज्ञापन जारी किए.

उसके बाद फरवरी में सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने विज्ञापनों के माध्यम से भ्रामक स्वास्थ्य उपचारों का प्रचार जारी रखने के लिए कंपनी के संस्थापक योगगुरु रामदेव और पतंजलि/दिव्य फार्मेसी के एमडी आचार्य बालकृष्ण को अवमानना नोटिस जारी किया. अदालत ने पतंजलि के ‘भ्रामक और झूठे’ विज्ञापनों पर कोई कार्रवाई न करने के लिए केंद्र सरकार को भी फटकार लगाई थी.

शिकायतकर्ता और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) की केंद्रीय कार्य समिति के सदस्य डॉ. केवी बाबू ने कहा, ‘पतंजलि के भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ फरवरी 2022 में मेरी पहली शिकायत में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि यह ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट (डीएमआरए) की धारा 3 का उल्लंघन है, जो 54 बीमारियों और स्थितियों के लिए दवाओं के विज्ञापन पर रोक लगाता है. जब इसे आयुष मंत्रालय ने उत्तराखंड एसएलए को भेजा, तो उन्होंने मंत्रालय को वापस लिखा कि वे ड्रग्स और कॉस्मेटिक्स नियमों के नियम 170 के तहत कार्रवाई नहीं कर सकते क्योंकि इस पर एक अदालत ने रोक लगा दी है. जब शिकायत डीएमआरए के उल्लंघन की थी तो नियम 170 कहां से आया?’

उन्होंने जोड़ा, ‘मेरे इस बात पर ज़ोर देने के बावजूद कि नियम 170 के तहत कोई शिकायत नहीं है, उन्होंने इसके तहत कंपनी को नोटिस भेजना जारी रखा. यह कंपनी के खिलाफ कार्रवाई में देरी करने के लिए एसएलए द्वारा एक जानबूझकर चली गई चाल थी.’

डीएमआरए की धारा 3(डी) अधिनियम के तहत निर्दिष्ट किसी भी बीमारी, विकार या मेडिकल स्थिति के निदान, इलाज, राहत, उपचार या रोकथाम के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विज्ञापन पर रोक लगाती है. डॉ. बाबू ने कहा कि पहली शिकायत के बाद उन्होंने कई और विज्ञापनों को चिह्नित किया था, जो एसएलए द्वारा कोई कदम न उठाने के चलते दिखाई दे रहे थे.

बताया गया है कि आयुष मंत्रालय को फरवरी 2022 में डीएमआरए का उल्लंघन करने वाले भ्रामक विज्ञापनों पर कई शिकायतें मिलीं और उसने उत्तराखंड के एसएलए को कार्रवाई की मांग करते हुए लिखा और शिकायतों पर कार्रवाई रिपोर्ट मांगी. हालांकि, एसएलए ने पतंजलि को लिखा, विज्ञापन चलते रहे और आयुष मंत्रालय ने एसएलए को और अधिक शिकायतें भेजीं और फिर से कार्रवाई रिपोर्ट मांगी.

हालांकि, एसएलए ने 26 अप्रैल, 2022 को नियम 170 का हवाला देते हुए कंपनी को एक नोटिस भेजा, कंपनी ने यह कहते हुए जवाब दिया कि नियम 170 पर फरवरी 2019 में मुंबई उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी थी. एक साल से अधिक समय बाद मई 2023 में आयुष मंत्रालय अभी भी यह इंगित करते हुए कार्रवाई की मांग कर रहा था कि डीएमआरए के कार्यान्वयन की शक्ति राज्य या केंद्र शासित प्रदेश सरकारों के पास निहित है. उसके एक साल बाद निष्क्रियता के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा फटकार लगाए जाने के बाद 8 मार्च, 2024 को आयुष मंत्रालय फिर से कार्रवाई रिपोर्ट मांग रहा था.

न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, डॉ. केवी बाबू ने कहा कि शीर्ष अदालत की कड़ी चेतावनी के बाद ही बालकृष्ण ने 21 मार्च को सुप्रीम कोर्ट से बिना शर्त माफी मांगी और यह सुनिश्चित करने का वादा किया कि भविष्य में ऐसे विज्ञापन जारी नहीं किए जाएंगे.

उन्होंने कहा, ‘यह स्थिति नहीं होती अगर केंद्र और राज्य दोनों ने कड़ा रुख अपनाया होता और इन दो वर्षों में पतंजलि आयुर्वेद पर मुकदमा चलाया होता.’

मालूम हो कि केरल के डॉक्टर केवी बाबू ने पतंजलि के भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए कई बार केंद्र सरकार को पत्र लिखा था. बीते फरवरी महीने में लिखे पत्र में केंद्र से शिकायत करते हुए उत्तराखंड के अधिकारियों पर केंद्र के कई निर्देशों और प्रधानमंत्री कार्यालय के हस्तक्षेप के बावजूद पतंजलि के हर्बल उत्पादों के भ्रामक विज्ञापनों को लेकर पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ कार्रवाई न करने का आरोप लगाया था.

(Note : Except heading this story has not been edited by ismatimes staff. It is being published only for awareness purposes).

Source : the wire hindi