सर_सैयद_अहमद_खान.

सर_सैयद_अहमद_खान.

सर_सैयद_अहमद_खान का जन्म आज ही के दिन 17 अक्टूबर 1817 को दिल्ली में  हुआ( 27 Mar 1898  वफ़ात ) अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संस्थापक सर सैय्यद अहमद जिन्हें 1842 में भारत के आखरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर ने उन्‍हें "जवद उद दाउलाह" उपाधि से सम्‍मानित किया।
1857 के गदर की असफलता के चलते सर सैयद का घर तबाह हो गया उनके परिवार के कई लोग मारे गए और उनकी मां को जान बचाने के लिए करीब एक सप्‍ताह तक घोड़े के अस्तबल में छुपे रहना पड़ा। इसके बाद ही वे पूरी तरह अंग्रेजों और उनके शासन के खिलाफ हो गए और पक्‍के राष्‍ट्रवादी बन गए।
1857 की क्रांति में मुस्लिम समाज का ढांचा टूट गया दिल्ली में हज़ारो उलेमाओं फांसी पर चढ़ा दिया गया। अंग्रेजों ने साज़िश के तहत स्कूल की किताबों को उर्दू फ़ारसी से बदल कर अंग्रेजी में कर दी जिसके मुसलमानों ने विरोध किया इसे अंग्रेजी ज़ुबान में पढ़ने से इनकार कर दिया। मुसलमान ने बच्चों को स्कूल भेजना बन्द कर दिया और बस यही से मुसलमान स्कूल और शिक्षा से दूर होने लगे। बिना अंग्रेजों की जुबान के बड़े ओहदों पर नोकरी मिलना बंद हो गयी। और मुस्लिम समाज बेरोजगारी और अशिक्षा की ओर बढ़ने लगा।
सर सैयद 100 साल आगे की सोचते थे मुसलमानो की आने वाली स्थिति को भांप गए थे। पूरा खानदान मुग़ल दरबार मे बड़े ओहदों पर था खुद उन्हें भी मुग़ल दरबार मे अच्छा ओहदा मिला था/
सरकारी सेवा में आने के बाद फतेहपुर, मैनपुरी, मुरादाबाद, बरेली, ग़ाज़ीपुर कई जगह कार्यरत रहे और बनारस के स्माल काजकोर्ट के जज पद से सेवानिवृत हुए। इन्हें ”सर” की उपाधि से विभूषित किया था।
नोकरी में रहते हुए मुरादाबाद, बरेली, ग़ाज़ीपुर और अलीगढ़ में उन्होंने कई आधुनिक स्कूल, कॉलेजों और संगठनों की स्थापना की।
आधुनिक शिक्षा और अंग्रेजी ज़ुबान के चलते उन पर अंग्रेजों के वफादार होने का इल्जाम लगा यहां तक कुफ़्र तक के फ़तवे लगे शायद उस वक़्त के मुसलमान उनकी सोच को नही समझ सके जितनी दूर की वो सोचते थे।लेकिन आज भी उनके द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किए गए योगदान को सुनहरे अक्षरों में याद किया जाता है
قوم کے معمار اور علی گڑھ مسلم یونیورسٹی کے بانی سر سید احمد خان کی آج برسی ہے، سر سید کے اس قوم پر اتنے احسانات ہیں کہ قوم اسے کبھی چکتا نہیں کر سکتی، ہم انہیں خراج عقیدت پیش کرتے ہیں

Copied. Lucknow Bureau chief.