अध्यात्म के मार्ग पर अग्रसर होने के लिए सेवा - सतसंग और साधना बनी सहयोगी

श्रीआदिशंकराचार्य की परंपरा को बढ़ाते हुए श्री श्री रविशंकरजी के 38 अनुयायी तपोभूमि रुद्र प्रयाग में अलखनंदा नदी के किनारे बसे आश्रम में एडवांस मेडीटेशन कोर्स करने के लिए एकत्रित हुए ।

अध्यात्म के मार्ग पर अग्रसर होने के लिए सेवा - सतसंग और साधना बनी सहयोगी

श्रीआदिशंकराचार्य की परंपरा को बढ़ाते हुए श्री श्री रविशंकरजी के 38 अनुयायी तपोभूमि रुद्र प्रयाग में अलखनंदा नदी के किनारे बसे आश्रम में एडवांस मेडीटेशन कोर्स करने के लिए एकत्रित हुए । जिनके जीवन का उद्देश्य सेवा -सत्संग और साधना द्वारा अध्यात्म के मार्ग पर चलते हुए भारतीय मूल संस्कृति की संरक्षा करते हुए सुसंस्कारों का निर्माण करना और बेहतर समाज की स्थापना करना है |

आर्ट ऑफ लिविंग कीअध्यापिका श्रीमती कल्पना जी, राधिका जी तथा शोभा जी के सहयोग से नीरामोहन जी के संरक्षण में सफलतापूर्वक यह कोर्स 23 जून को संपन्न हुआ ।

तत्पश्चात यह ग्रुप बद्रीनाथ के महत्व को समझते हुए वहां के तीर्थ के लिए रवाना हुआ । मार्ग में प्रकृति की सुंदरता अपने पूरे निखार पर थी ।हरे-भरे ऊंचे - ऊंचे पहाड़ों पर रिमझिम- रिमझिम करती हुई श्वेत मोतीयों की लड़ियों के समान बरसती बरखा रानी प्रकृति के सौंदर्य में चार चाँद लगा रही थी |पर्वत प्रदेश की  पावस - प्रकृति का ऐसा अद्भुत अवर्णनीय सौंदर्य सभी साधकों के मन को अपनी ओर खींच रहा था ।पहाड़ों का ऐसा रमणीय सौंदर्य फिल्मों में देखा था अथवा पढ़ा था । यह अनुभव वास्तव में सभी के लिए अविस्मरणीय बन गया है  ।

साधकों ने "तप्त कुंड " में गरम गंधक के जल से स्नान कर बद्रीनाथ भगवान के दर्शन किए और यथा स्थान पर बैठकर साधना का लुफ्त उठाया ।कुछ साधकों ने प्रभु बद्रीनाथ के समक्ष बैठ कर "-विष्णु- सहस्त्रनाम पूजा ,"-वेदपूजा " अथवा आरती करवाई तो कुछ साधकों ने प्रभु बद्रीनाथ जी का महाअभिषेक कार्यशैली में हिस्सेदार बन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया ।

साधकों ने महसूस किया कि 'एक गुरु ही होता है जो हमें    मौन का तप देकर समाधि दान देते हुए सच्चे विवेक और वैराग्य की निधि देते हैं तथा जीवन - मरण के चक्र और आवागमन से मुक्त करवाता है ।"

भारत के प्रथम' माणा गांव ' की सुखद यात्रा में माता सरस्वती नदी का उद्गम स्थानऔर द्रोपदी जी को सरस्वती नदी पार कराने के भीम द्वारा ' रखी गई भीम- शिला'हमारे प्राचीन गौरवमय भारत के इतिहास का स्मरण करवा रहा था ।

गणेश जी की गुफा और वेदव्यास जी की पवित्र गुफा को देखकर सभी साधकों का मन श्रद्धा और आदर से भर गया ।

वेदव्यास जी ने  अपने मनन चिंतन और अथक परिश्रम द्वारा अपनी इस गुफा में बैठकर वेदों को चार भागों में विभाजित किया तथा सत्रह पुराणों की रचना कर महाभारत को लिखने के लिए गणेश जी का आवाहन किया था तत्पश्चात यहां भगवत पुराण की रचना की ।

रुद्रप्रयाग से ऋषिकेश की ओर आते हुए गुल्लर घाटी में महर्षि वशिष्ठ की तपस गुफा एवं माता अरुनधति की आराधना गुफा में साधना करने पर जो शांति मिली वास्तव में वह अनोखी और अनूठी थी, साक्षात अनुभव हो रहा था कि यह महान योगी और तपस्वीयों की तपस योगभूमि है ।

मौन व्रत और साधना - ध्यान करने के पश्चात मन की शांति और स्थिरता और भी अधिक सुखद स्थिति बना देती है, सुंदर वस्तु और अधिक सुंदर मनोरम और अपनी - अपनी सी लगने लगती है ।

योग साधना भारतीय संस्कृति का प्राचीनतम अंग रहा है । उस की  सुरक्षा और संरक्षण का ध्येय सामने रखते हुए आज की संतति को जागृत करने के लिए ऐसे प्रयास यदि होते रहेंगे तो निःसंदेह भारत में स्वस्थ और संस्कारी युवा वर्ग का निर्माण होना निश्चित है ।