राष्ट्रीय ध्वज की निर्माता सुरैया तय्यब जी के नाम को साज़िश के तहत छुपाया गया

देश की आज़ादी की तारीख़ मुस्लमानों के लहू से लिखी गई लेकिन फिर भी मुसलमानों की अज़ीम क़ुर्बानीयों को राजनीतिक साज़िश के पर्दा में छिपाने की कोशिश की गई : कलीमुल हफ़ीज़

राष्ट्रीय ध्वज की निर्माता सुरैया तय्यब जी के नाम को साज़िश के तहत छुपाया गया

नई दिल्ली : दिल्ली के मुस्तफ़ाबाद में ‘भारत की आज़ादी में मुसलमानों की क़ुर्बानियाँ’ को लेकर बेदारी मुहिम के तहत हुए प्रोग्राम और ध्वजारोहण के मौके पर ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तिहादुल मुस्लिमीन दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष कलीमुल हफ़ीज़ ने कहा कि आज जिस तिरंगे को हम सलाम कर रहे हैं, आज़ादी का जश्न मना रहे हैं,

इस राष्ट्रीय ध्वज को डिज़ाइन करने वाली मुसलमान महिला सुरैया तैय्यब जी थीं लेकिन पिछले 70 सालों में तिरंगे की डिजाइनर सुरैया तैय्यब जी के नाम को राजनीतिक षड्यंत्र के द्वारा छिपाने का गुनाह किया गया है। अब तक मुसलमानों की आज़ादी के लिए दी गई क़ुर्बानियों को छिपाने की जो कोशिश एक साज़िश के तहत होती रही है ये इसी कड़ी का हिस्सा है। इसलिए मजलिस ए इत्तिहादुल मुस्लिमीन हिंदुस्तान की आज़ादी में मुसलमानों की क़ुर्बानियों को देश के सामने लाने का काम कर रही है।

कलीमुल हफ़ीज़ ने कहा कि सुरैया तैय्यब जी उस कमेटी में शामिल थीं जिसको उनके पिता बदरुद्दीन तय्यब जी ने पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नहरू के आदेश पर डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में बनाया था। लेकिन अफ़सोस की बात है कि राष्ट्रीय झंडे की डिज़ाइनर सुरैया तैय्यब जी का नाम कहीं नहीं लिया जाता। दरअसल ये राजनीतिक षड्यंत्र है ताकि मुसलमानों की क़ुर्बानियों पर पर्दा डाला जा सके। इसलिए मजलिस मुस्लिम मुजाहिदीन ए आज़ादी की क़ुर्बानियों को सामने लाने के लिए अभियान चला रही है ताकि इस साज़िश को बेनक़ाब किया जा सके।

कलीमुल हफ़ीज़ ने कहा कि देश की आज़ादी की तारीख़ मुसलमानों के ख़ून से लिखी गई है और मुसलमानों ने आज़ादी के लिए दूसरों से ज़्यादा क़ुर्बानियाँ दीं हैं आज हमें ना सिर्फ़ अपने बुज़ुर्गों और शहीदों और उनकी क़ुर्बानियों को याद करना चाहिए बल्कि जिस ख़ूबसूरत हिंदुस्तान का सपना उन्होंने देखा था उस को साकार करने की कोशिश करना चाहिए।

दिल्ली मजलिस अध्यक्ष ने कहा कि बहुत से नासमझ लोग मुसलमानों की देश भक्ति पर सवाल उठाते हैं जबकि मुसलमानों ने आज़ादी की लड़ाई में दूसरों से ज़्यादा क़ुर्बानियां पेश की हैं। पहली जंग-ए-आज़ादी ग़दर 1857 में एक लाख से ज़्यादा मुसलमानों को अंग्रेज़ों ने शहीद कर दिया था। कानपुर से लेकर फ़र्रूख़ाबाद तक कोई पेड़ ऐसा नहीं था जिस पर किसी मुसलमान की लाश ना टंगी हो, इसी तरह दिल्ली के चाँदनी-चौक से लेकर लाहौर तक कोई वृक्ष ऐसा नहीं था जिस पर उलेमा को फांसी देकर उनके जिस्म को ना लटकाया गया हो।

कलीमुल हफ़ीज़ ने कहा कि आज वो लोग तिरंगे की आड़ में ख़ुद को देशभक्त साबित करना चाहते हैं जो अंग्रेज़ों के लिए काम कर रहे थे, माफ़ी मांग रहे थे। 

कलीमुल हफ़ीज़ ने कहा कि 1757 से लेकर 1857 तक नवाब सिराजुद्दौला और टीपू सुलतान की क़ुर्बानियां क्या भुलाने के लायक़ हैं? या फिर मौलवी अहमद उल्लाह शाह की क़ुर्बानी जिनको अंग्रेज़ों ने दो हिस्सों में दफ़न किया था। 1857 से लेकर 1947 तक लाखों मुसलमान शहीद हुए ख़ुद बहादुर शाह ज़फ़र को बेटों के सर काट कर पेश किए गए और अंग्रेज़ों ने जिन लोगों को काला पानी जेल भेजा उनमें 75 फ़ीसद क़ैदी मुसलमान थे। आज़ादी की लड़ाई में जो आंदोलन चलाए गए उनमें ‘रेशमी रूमाल आंदोलन’ देवबंद मदरसे से चलाया गया जिसके संस्थापक शेख़ुल हिंद मौलाना महमूदुल हसन थे आज इस मदरसे पर सवाल उठाए जाते हैं।

हिंदुस्तान ग़दर पार्टी जिसने काबुल जाकर अंतरिम भारत सरकार बनाई जिसके राष्ट्रपति राजा महिन्द्र प्रताप और प्रधानमंत्री मौलवी बरकत उल्लाह बनाए गए थे। उन्होंने अंग्रेज़ों से ससस्त्र लड़ाई लड़ी थी। आज़ाद हिंद फ़ौज में सुभाषचंद्र बोस के साथ कैप्टन शाहनवाज़ व अब्बास अली कांधे से कांधा मिलाए हुए थे। इसलिए मेरी सबसे अपील है कि मजलिस कारकुनों के साथ इस अभियान में शामिल हों और जनता को बताएं कि इस देश के कण-कण और निर्माण में मुस्लमानों का क्या योगदान है। 

मुस्तफ़ाबाद और करावल नगर में हुए जश्न -ए-आज़ादी और झंडारोहण प्रोग्राम में शामिल होने वालों में महासचिव शाह आलम सिद्दीक़ी, संगठन सचिव राजीव रियाज़ प्रतापगढ़ी, आई टी सेल हेड मारूफ़ खान, सह संगठन सचिव सरताज अली, ज़िला अध्यक्ष डॉ.अनवर, ज़िला उपाध्यक्ष फ़खरुद्दीन, ज़िला युवा अध्यक्ष साजिद सैफ़ी आदि के नाम खासतौर पर महत्वपूर्ण हैं।

मीडीया सेल दिल्ली मजलिस