सुप्रीम कोर्ट ने 2022 की घटना में मुस्लिम पुरुषों को यातना के लिए पुलिस को लगाई फटकार

चार पुलिसकर्मियों ने सुप्रीम कोर्ट में अक्टूबर, 2023 में हिरासत में यातना के लिए गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा सुनाई गई 14-दिवसीय जेल की सजा के खिलाफ अपील की

सुप्रीम कोर्ट ने 2022 की घटना में मुस्लिम पुरुषों को यातना के लिए पुलिस को लगाई फटकार
Gujrat police for torturing Muslim men in 2022 incident

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार 23 जनवरी 2024 को गुजरात पुलिस के चार लोगों की आलोचना की. इस घटना में अक्टूबर 2022 को तीन मुस्लिम पुरुषों को सार्वजनिक जगह में एक पोल पर बांध कर गुजरात पुलिस ने पिटाई की जिसका विडियो तब बहुत चर्चा में आया था. 

न्‍यायाधिस आर गवई और संदीप मेहता की पीठ

न्‍यायाधिस आर गवई और संदीप मेहता की एक पीठ ने जोर देकर कहा कि पुलिसकर्मियों ने पब्लिक प्‍लेस में निर्दोष लोगों के साथ मार पीट की जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर खुद ही वायरल किया. पीड़ितों को पुलिस ने 24 घंटे से अधिक समय तक अवैध हिरासत में रखा और उन पर अमानवीय अत्‍याचार किया. पीठ ने कहा कि क्या आप लोगों के पास कानून के तहत लोगों बांधकर डंडे से मारने का अधिकार है? यह किस तरह का अत्याचार है और आप लोग इसका वीडियो भी लेते हैं. यह कितना घिनौना अपराध है.

वरिष्ठ अधिवक्ता IH सैयद ने पीड़ितों के लिए सूचित किया कि चार पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की एक निजी शिकायत भी ट्रायल कोर्ट के समक्ष लंबित थी, और यह कि अवमानना कार्यवाही को किसी अन्य कानूनी कार्यवाही से स्वतंत्र रहना था.

गरबा समारोह के दौरान मुस्लिम समुदाय पर पत्‍थर फैकने काआरोप

आरोप है कि अक्‍टूबर 2022 को मुस्लिम समुदाय के 150-200 लोगों के एक समूह ने खेडा जिले के उंधेला गांव में एक मंदिर के अंदर नवरात्रि उत्सव के दौरान एक गरबा समारोह में कथित तौर पर पत्थर फेंके. इस घटना के बाद, पुलिस ने कई लोगों को गिरफ्तार किया, जिनमें से कुछ को पोल से बांधकर सार्वजनिक रूप से पिटाई और धार्मिक अपशब्‍दों से अपमानित किया गया था. इस घटना के वीडियो भी वायरल हुए थे.

19 अक्टूबर, 2023 के अपने फैसले में उच्च न्यायालय ने फ़्लॉगिंग को “अमानवीय” और “मानवता के खिलाफ कार्य” कहा, जबकि यह कहते हुए कि पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए लोगों के पास “जीवन का अधिकार है”, जिसमें गरिमा के साथ जीवन “जीवन भी शामिल है”.

अपने फैसले में उच्च न्यायालय ने इंस्पेक्टर एवी परमार, उप-निरीक्षक डीबी कुमावत, प्रमुख कांस्टेबल केएल दाभी, और कांस्टेबल राजू दाबी के विवाद को खारिज कर दिया. पुलिसकर्मियों ने पीड़ितों को कारावास के आदेश को रद्द करने के लिए मौद्रिक मुआवजे की पेशकश की थी, लेकिन पीड़ितों ने किसी भी समझौते या मुआवजे को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था.