हमास का हमला निंदनीय लेकिन क्या इजरायल है दूध का धूला?

भारत और दुनिया के देश 75 सालों से इस समस्या का कोई हल नही निकाल पाए हैं। फिलिस्तीन के लोगों के लिए रूस, टर्की, ईरान, चीन, पाकिस्तान और भारत के विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस इत्यादि ने समर्थन दिया है।

हमास का हमला निंदनीय लेकिन क्या इजरायल है दूध का धूला?
Hamas attack is condemnable

प्रिय पाठको, अगर हम न्याय, ईमानदारी, इंसानियत की बात करें तो दुनिया के सामने इजरायल और फिलिस्तीन की सारी सच्चाई है। मगर लगता यह है कि हम सब जान कर अंजान बने बैठे है। भारत हमेशा से फिलिस्तीन के अधिकारों के लिए आवाज उठाता रहा है। अमेरिका और ब्रिटेन ने यहुदियों के लिए फिलिस्तीन की पाक जमीन में एक छोटे से टुकड़े में बसाया जिसको नाजायज तरीके से आज पूरे फिलिस्तीन पर कब्जा हो रखा है। आज फिलिस्तीनी लोग इजरायल के रहमो करम पर जिन्दा रहते हैं वे अपनी मर्जी से सांस भी नहीं ले सकते।

जहां तक अंग्रेजों की गुलामी का सवाल है वह हमेशा दूसरे देशों को गुलाम बनाते रहे हैं लेकिन ऐसी गुलामी जहां हर घडी सरों पर मौत नाचती हो। किसी को यह पता नही होता कि कब किस को उठा लिया जाऐगा और यातनाओं के साथ मरने के लिए जिन्दा रखा जाएगा।

फिलिस्तीन की आजादी के लिए गांधी जी ने फिलिस्तीन में यहूदी देश का समर्थन नहीं किया। गांधी जी ने लिखा, “यहूदियों को अरबों पर थोपना गलत और अमानवीय है। अरब देशों को बांटना मानवता के खिलाफ अपराध होगा।” फिलिस्तीन में यहूदी देश के निर्माण का उनका विरोध दो प्रमुख मान्यताओं पर आधारित था। पहला फिलिस्तीन पहले से ही अरब फिलिस्तीनियों का घर था और दूसरा यहूदियों को फिलिस्तीन में बसाना।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी नेे इजरायल और फिलिस्तीन को लेकर 26 नवंबर 1938 को हरिजन में एक लेख लिखा था जिसमें उन्होंने कहा था कि, “फिलिस्तीन उसी तरह अरबों का है, जिस तरह इंग्लैंड अंग्रेजों का है या फ्रांस फ्रांसीसियों का है।”

भारत और दुनिया के देश 75 सालों से इस समस्या का कोई हल नही निकाल पाए हैं। फिलिस्तीन के लोगों के लिए रूस, टर्की, ईरान, चीन, पाकिस्तान और भारत के विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस इत्यादि ने समर्थन दिया है। भारत के प्रधानमंत्री मोदी जी ने इजरायल को समर्थन देने की बात अपने एक्स हेंइल से अपनी पोस्ट में लिखा है। जबकि भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी जी ने भी फिलिस्तीन के लोगों का समर्थन किया था। भारत में बहुसंख्यक लोग फिलिस्तीन के अधिकारों की बात करते रहे हैं और फिलिस्तीन का समर्थन करते हैं।

रूस के राष्ट्रपति पुतिन और टर्की के राष्ट्रपति तयब अर्तुगान ने फिलिस्तीन के लोगों के समर्थन के लिए कहा है। राष्ट्रपति पुतिन ने कहा है कि अमेरिका पहले से ही इजरायल के साथ खड़ा है और जो इजरायल फिलिस्तीन की जमीन पर बसा है यह अमेरिका और ब्रिटेन की करतूत का नतीजा है जो 75 सालों से फिलिस्तिीन के लोगों को इजरायल के जुर्म को झेलने के लिए छोड़ रखा हैं।

अंत में हम यही कह सकते हैं कि हम शांतिप्रिय हैं और खून खराबा हम लोगों को पसंद नही है। क्यों नहीं सर्वे सुखिना, सर्वे निरामय की नीति को अपनाकर शांति से रहा जाए। क्या जरूरी है पूरे देश की जनता की जानों को खतरे में डालना। यु़द्ध दोनों तरफ बर्बादी लाऐगी, कभी भी खुशहाली नही आ सकती। इजरायल और फिलिस्तीन में 75 सालों से अशांति का वातावरण रहा है। इसे कभी भी शांति के लिए नहीं जा सकता है। यह जमीन नबीयों की पाक जमीन है। जहां अनगिनत बेगुनाहों के खून से यह रंगीन हो रही है। बहस न मैं कर सकता हूं न यह मेरा काम है, यह सब राजनीतिज्ञों, अधिकारियों और बुद्धिजीवियों का काम है।

यह विषय विचारणीय है कि आखिर इस समस्या का समाधान क्या है? जैसे इजरायल को फिलिस्तीन के लोगों ने अपनी जमीन दी है, क्या उसी तरह इस दुनिया में फिलिस्तीन की जनता के लिए कोई शांतीप्रिय जगह हो सकती है। अगर नहीं तो फिलिस्तीन का स्थायी समाधान जरूरी ढूंढ़ना होगा। मगर मुझे लगता है कि फिलिस्तीनी लोग कभी भी अपनी जगह न छोड़े, क्यूंकि यहां उनके बुजुर्गों की कबरंे हैं।

कल क्या होगा, कल कौन जिएगा कौन मरेगा, यह मैं नहीं जानता, मगर यह जरूर समझ रहा हूं कि यह इंसान शैतानी काम बहुत करने लगा है। हम लोग हमेशा शांति और भाईचारे की बात करते हैं। दुनिया में शांति के लिए लाखों लोग काम कर रहे हैं, आखिर क्या है यह सब। क्या सब बकवास है। कहां हैं विश्व की एजेंसियां जिन्हें कुछ नहीं दिख रहा है। यूएन शांति एजेंसियां, एनजीओज, सब सो रहे हैं। दुनिया में अमेरिका का जुर्म लिबिया, ईराक और अफगानिस्तान सबके सामने है। मगर सब बेकार है सब ठीक है।

धन्यवाद,

-एडीटर, मोहम्मद इस्माइल