आतंकवादियों से ज्यादा खतरनाक हैं सांप्रदायिक तत्व

Communal elements are more dangerous than terrorists

आतंकवादियों से ज्यादा खतरनाक हैं सांप्रदायिक तत्व
communal-elements -dangerous-terrorists

लखनऊ, August 17, 2013: यूपी की कचहरियों में 2007 में हुये धमाकों में पुलिस तथा आईबी के अधिकारियों द्वारा फर्जी तरीके से फँसाये गये मौलाना खालिद मुजाहिद की न्यायिक हिरासत में की गयी हत्या तथा आरडी निमेष कमीशन रिपोर्ट पर कार्रवायी रिपोर्ट के साथ सत्र बुलाकर सदन में रखने और आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को छोड़ने की माँग को लेकर रिहाई मंच का धरना शुक्रवार को 87 वें दिन भी जारी रहा.

रिहाई मंच ने आजादी की 66 वीं वर्षगांठ पर आतंकवाद के नाम पर पीड़ित व दंगा पीड़ित लोगों की जनसुनवाई की संक्षिप्त रिपोर्ट को आज जारी किया. जनसुनवाई में पिछली मुलायम सरकार में संकटमोचन धमाकों के मामले में फँसाये गए मौलाना वलीउल्ला के ससुर मौ0 हनीफ ने कहा कि सरकारों की सांप्रदायिक जेहनियत सामने आती है कि उनके द्वारा नियुक्त सरकारी वकील किस तरह मुस्लिम विरोधी तर्क देते हैं. इस दौरान इमाम बुखारी जैसे मुसलमानों के अगुवा बनने वाले लोगों ने अपने हाथ खड़े कर लिये और किसी तरह की कोई मदद नहीं की. जबकि सीआरपीएफ कैंप रामपुर मामले में फँसाये गये मुरादाबाद के जंग बहादुर के बेटे शेर खां, कुंडा प्रतापगढ़ के कौसर फारूकी के भाई अनवर फारूकी ने कहा कि उनके पिता को हार्ट की गम्भीर बीमारी है लेकिन उन्हें इलाज भी नहीं मुहैया कराया जा रहा है. पूरा आरोप फर्जी है इसीलिये हमारी सुनवायी में लम्बी-लम्बी तारीखें लगा दी जाती हैं. उन्होंने बहुत लम्बी साँस लेते हुये कहा मेरे पिता की रिहाई तो दूर अगर सरकार जेल मेन्यूवल को ही सही से लागू कर दे तो हम सरकार के शुक्रगुजार होंगे.

धरने में आईएनएल राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हाजी फहीम सिद्दीकी, पिछड़ा समाज महासभा के एहसानुल हक, डा0 हारिश सिद्किी, भागीदारी आंदोलन के पीसी कुरील, शिवदास, शिवनारायण कुशवाहा, अनिल आजमी, मो0 फैज, शाहनवाज आलम, राजीव यादव मौजूद रहे.

रिहाई मंच द्वारा आजाजी की 66वीं वर्षगांठ पर आतंकवाद के नाम पर पीडि़त और दंगा पीडि़तों की जनसुनवाई की संक्षिप्त रिपोर्ट पेश की जिनमें कुछ की रिपोर्ट नीचे दर्ज है:

मौलाना खालिद के चचा जहीर आलम फलाही- खालिद की शहादत के बाद मैं बहुत कुछ सोचने को मजबूर हुआ. रिहाई मंच के धरने का एक पहलू यह है कि इस आंदोलन ने पूरे मुल्क में बेगुनाहों की रिहाई के सवाल को एक राजनीतिक सवाल बना दिया है और आईबी की मुस्लिम विरोधी नितियों को उजागर कर दिया है. सरकार ने झूठा वादा किया कि वह बेगुनाहों को छोड़गी यह बहुत बड़ा झूठ था. जो इस देश की सर्वोच्च सदन संसद में सपा ने बोला था. उन्होंने कहा कि मैंने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, उच्च न्यायालय के न्यायामूर्ति और अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष को खालिद मुजाहिद की मौत के पहले लिखा था कि आप इस मामले को अपने हाथ में ले लें. शहादत के बाद भी पत्र लिखा. इसके बावजूद मामले पर संज्ञान नहीं लिया गया.

कचहरी विस्फोट मामले में आजमगढ़ के तारिक कासमी के चचा हाफिज फैयाज आजमी- मेरे बेटे की बेगुनाही का सबूत निमेष कमीशन रिपोर्ट को अखिलेश यादव की सरकार ने एक साल से दबा रखी है. अगर उस पर अमल कर लिया गया होता तो मेरा भतीजा भी छूट जाता और उसके साथ पकड़े गये खालिद मुजाहिद की हत्या भी नहीं होती. इस सरकार ने सिर्फ हमें धोखा दिया है.

अक्षरधाम मामले में आरोपी चांद खां की बीवी नगमा परवीन- मैं चांद खां की बीवी हूँ मैं यहाँ इंसाफ के लिये आयी हूँ. हमें आज तक कोई इंसाफ नही मिल पाया है.मेरी दो बेटियां है. उन्हें लेकर अपने वालिद के साथ गुजारा कर रही हूँ. मेरे शौहर और बच्चियों के लिये दुआ कीजिए कि उन्हे न्याय मिले. जब उन्हें पकड़ा गया तो एक पल के लिये लगा कि सब कुछ खत्म हो गया. इन बच्चियों को अपने पिता के चेहरे याद नही हैं. मेरे शौहर कभी गुजरात नहीं गये थे फिर भी उन्हें अक्षरधाम पर हुये हमले में फँसा दिया गया और पोटा की अदालत ने उन्हें फांसी की सजा सुना दी. पोटा अदालत में उनके पति के वकीलों की एक भी बात नहीं सुनी. उन्हें उन्हीं पुलिस वालों ने फँसाया है जो आज इशरत जहां को फर्जी मुठभेड़ में मारने के आरोप में जेलों में बंद हैं. मैं चाहती हूँ कि मेेरे पति पर लगाए गये आरोपों की फिर से जाँच हो और साथ ही साथ अक्षरधाम मामले की फिर से किसी निष्पक्ष एजेंसी से जाँच हो. ताकि अवाम उस घटना की सच्चाई जान सके.

पिछली मुलायम सरकार में संकटमोचन धमाकों के मामले में फँसाये गए मौलाना वलीउल्ला के ससुर मौ0 हनीफ- वलीउल्ला को जबरन फूलपुर से उठाया गया. पाँच दिनों तक गायब रहने के बाद हाई कोर्ट में रिट हुयी, अखबारों में खबर छपी तब हम लोग जाने कि उन्हें बनारस बम कांड में दिखा दिया गया है. फिर मुकदमा शुरु हुआ जिसमें हमें न्यायपालिका की सांप्रदायिकता से परिचित कराया. उन्हें पेशी के दौरान वकीलों और पुलिस वालों ने बुरी तरह पीटा. किसी तरह बनारस से गाजियाबाद मुकदमा ट्रांसफर हुआ. जिसका विरोध करते हुये सरकारी वकील ने कहा था कि विस्फोट बनारस में हुआ है तो क्या सुनवाई पाकिस्तान के मुज्जफराबाद में होगी. इससे सरकारों की सांप्रदायिक जेहनियत सामने आती है कि उनके सरकारी वकील किस तरह मुस्लिम विरोधी तर्क देते हैं. इस दौरान इमाम बुखारी जैसे मुसलमानों के अगुवा बनने वाले लोगों ने अपने हाथ खड़े कर लिये और किसी तरह की कोई मदद नहीं की.

सीआरपीएफ कैंप रामपुर मामले में फँसाये गये मुरादाबाद के जंग बहादुर के बेटे शेर खां, कुंडा प्रतापगढ़ के कौसर फारूकी के भाई अनवर फारूकी- मेरे पापा को जेल के अन्दर छह6 साल बीत चुके हैं. मिलने के लिये जाते हैं तो हमारी अलग से 2-3 घंटे जाँच होती है और साथ में ले गये खाद्य सामग्री को तहस- नहस कर दिया जाता है. मेरे पिता को हार्ट की गम्भीर बीमारी है लेकिन उन्हें इलाज भी नहीं मुहैया करायी जा रही है. पूरा आरोप फर्जी है इसीलिये हमारी सुनवायी में लम्बी-लम्बी तारीखें लगा दी जाती हैं. मेरे पिता को एक बंद अँधेरी कोठरी में रखा जाता है जहाँ हवा बिल्कुल नहीं पहुँचती. मेरे पिता ने पिछले दिनों मुलाकात के दौरान बताया था कि उनके कमरे में कहीं से एक चिड़िया घुस गयी थी जो थोड़ी देर बाद तड़प कर मर गयी. मेरे पिता की रिहाई तो दूर अगर सरकार जेल मेन्यूवल को ही सही से लागू कर दे तो हम सरकार के शुक्रगुजार होंगे. लेकिन हमें नहीं लगता की हम मुसलमानों के वोट से ही बनी यह सरकार हम मुसलमानों पर इतनी भी रहम करेगी.

अनवर का कहना है कि उसके भाई को भी जेल गये छह साल हो गये हैं लेकिन केस नहीं चलाया जा रहा है. गवाहों ने गवाही देने से इनकार कर दिया है. यहाँ तक कि जिन लोगों के बारे में पुलिस ने कहा था कि उनके पैर में गोलियाँ लगी हैं उन गवाहों ने जज के सामने कहा कि उन्हें आज तक कभी गोली ही नहीं लगी है. अगर सरकार सीबीआई जाँच करा दे तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा. मैं यह नहीं कहता कि उन्हे छोड़ दिया जाय बल्कि एक निष्पक्ष जाँच तुरन्त करवाई जाय और अगर दोषी हैं तो सजा दिया जाय और निर्दोष हैं तो छोड़ा और मुआवजा दिया जाये.

इस दौरान फहीम अंसारी के वकील रहे मोहम्मद शुऐब ने बताया- सीआरपीएफ कैंप मामले में एक और गिरफ्तारी हुयी थी. जिनका नाम फहीम अरशद अंसारी है आई बी और महाराष्ट्र एटीएस ने फहीम अंसारी को 26/11 के हमले में आरोपी बनाया था. अंसारी से बरामद नक्शे को रामपुर केस में भी पेश किया था लेकिन उसे अदालत ने खारिज कर दिया.

जून 2007 में आतंकवाद के नाम पर पकड़े गये बिजनौर के नौशाद के पिता मो0 शफी और याकूब के बहनोई जियाउल हक- याकूब को बिजनौर के नगीना से पुलिस ने उठाया था तो वहीं नौशाद को राजस्थान के अलवर जिले के मिमराना इलाके से पुलिस ने पकड़ा था. याकूब को दो दिनों तक और नौशाद को 12 दिनों तक अवैध हिरासत में रखने के बाद यूपी एसटीएफ ने याकूब को चारबाग रेलवे स्टेशन और नौशान को लखनऊ रेजीडेंसी से फर्जी गिरफ्तारी दिखाई. पुलिस के कहानी के मुताबिक उनके आतंकवादी होने की खबर मुखबिर ने दी थी. इन्हें सरेआम भीड़ में पकड़ने दावा किया गया था लेकिन पुलिस के पास एक भी स्वतंत्र गवाह नहीं है. इनके पास से आरडीएक्स की बरामदगी बतायी गयी. पुलिस ने आम बेचने वाली की तराजू पर आरडी एक्स को तौलने का दावा किया है. लेकिन आम बेचने वाले को गवाह नहीं बनाया है. पूरा मामला झूठ का पुलिंदा है. लेकिन 2007 से ही हमारे बच्चे जेलों में सड़ रहे हैं, जिन्हें छोड़ने का दावा करके सरकार सत्ता में आयी.

अहमदाबाद धमाकों में आरोपी बनाये गये आजमगढ़ के मोहम्मद हबीब के भाई अबू आमिरने कहा कि-27 दिसंबर 2011 को आजमगड़ के नरियावां बाजार के पास से उनको गिरफ्तार किया गया था बाद में पता चला कि उन्हे अहमदाबाद और सूरत ब्लास्ट में आरोपी बनाया गया है. अभी तक अनवर पर मामला सिद्ध नहीं हुआ है.

सीतापुर बिस्वां के सैयद मुबारक हुसैन जिन्हें कश्मीरी की तरह दिखने के चलते आतंकी बताकर जेल में डाल दिया गया- 14 अगस्त 2006 को मुझे बरेली की एक मस्जिद से पुलिस ने उठाया और कई दिनों तक थाने में रखा जहाँ मुझे कई दिनों तक रोज सैकड़ों लाठियाँ मारते थे. वे मुझ पर दबाव डालते थे कि मैं कश्मीर के पुंछ का रहने वाला हूँ और मैंने पाकिस्तान में आतंकवाद की ट्रेनिंग ली है और जितने भी धमाके हुये हैं मैं सबका मास्टर माइंड हूँ. रोज मुझे एक पीपा पानी नाक के रास्ते पिलाया जाता था. मुझे दो साल बाद जमानत मिली और छूटने के बाद मुझे दो साल मुकदमा लड़ना पड़ा. यह साबित करने के लिये की मैं सीतापुर का हूँ. मुझे आज तक कोई मुआवजा नहीं मिला और मेरी सात बीघे जमीन बिक गयी.

लखनऊ के जियाउद्दीन के पिता मो0 नसीम- जियाउद्दीन जिल्द साज था, पुलिस की झूठी कहानी के मुताबिक उसने 100 नंबर पर फोन करके चार बाग रेलवे स्टेशन को उड़ाने की धमकी दी थी. पाँच साल से वह आज निर्दोष होने के बावजूद जेल में बंद है. उसी दौरान एक धमकी स्टेशन को उड़ाने की और दी गयी थी, जो अखबारों में भी छपी थी. धमकी देने वाले का नाम जिया लाल था. लेकिन उसे नहीं पकड़ा गया. घर में वही कमाने वाला था. मेरे घर के जवान बेटे के जेल जाने के बाद मेरी बेटी बीमारी से दवा के अभाव में मर गयी.

इस दौरान अधिवक्ता असद हयात जो दंगा पीड़ितों के वकील है ने बताया- कोसी कलां दगे के पीड़ितों को मुवाबजा एवं निष्पक्ष जाँच के लिये उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गयी है.

रियाज इस्तियाक अस्थान में हुये दंगे के पीड़ित- अस्थान में 23 जून एवं 23 जुलाई 2012 को दंगा हुआ. उसमें 52 घर जलाये गये. 23 जुलाई को प्रवीण भाई तोगड़िया अस्थान आये थे.आतंकवादियों से ज्यादा खतरनाक सांप्रदायिक तत्व हैं. इस बात को सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है. 23 जुलाई को हुये फसाद में तोगड़िया की भूमिका है. लेकिन उस पर रिपोर्ट तक दर्ज नही की गयी. आतंकवाद और दंगों के मामलों में पुलिस की विवेचना पर भी सवाल खड़े होते हैं. चार लड़कों द्वारा एक दलित लड़की का बलात्कार करने का आरोप है. और ये दंगा उसी आधार पर हुआ था. विश्व हिन्दु परिषद के लोगों को खुश करने के लिये मुस्लिम लड़को पर गैंगस्टर लगा दिया गया.

इटावा के अदनान जिसे ब्राहमण लड़की से प्रेम करने के कारण मार दिया गया के पिता अखलाक का बयान – हमारा बेटा अदनान कीर्ति मिश्रा से दिल लगा बैठा. जिसके चलते अदनान को बीच सड़क पर मार दिया गया. हमारे बेटे को मरवाने में मैजिस्ट्रेट सुरेंदर शर्मा ने बड़ी भूमिका निभाई है. हमारे मामले में में कोई इंसाफ नही मिला. सीबीआई जाँच करवाने कीँ मांग की लेकिन अखिलेश सरकार ने ऐसा नहीं किया. मेरे घर के 14 सदस्य रोज अदनान के गम में घुट-घुट कर मर रहे हैं. मुसलमान होने के कारण हमारा कोई पुरसाहाल नहीं है. मेरे बेटे की मौत ने मुझे समझा दिया है कि हिन्दू मुस्लिम अलग-अलग हैं. इससे पहले मैं ऐसा नही सोचता था. हत्यारों की गिरफ्तारी तुरन्त हो. मेरे बेटे अदनान और कीर्ति मिश्रा ने शादी के लिये जब सिटी मैजिस्ट्रेट को आवेदन किया तो उन्होंने यह जानने के बाद कि लड़की ब्राह्मण है और लड़का मुस्लिम मजिस्ट्रेट ने कहा कि तुम्हे यही लड़का मिला था. अगर तुम दलित से भी शादी करती तो मैं इस शादी को रजामंदी दे देता. उसने टाल मटोल कर तीन माह बाद दुबारा बुलाया. उससे पहले ही 23 अक्टूबर की अदनान की गोली मार कर हत्या कर दी गयी. मुख्य अभ्यिुक्त विकास यादव को मजिस्ट्रेट बचा रहा है. जो खुलेआम घूम रहा है और लगातार मुझे जान से मारने की धमकियाँ दे रहा है. अब इस मामले को मैं इंसाफ के वास्ते हाईकोर्ट लेकर जा रहा हैं.

लखनऊ जनसुनवाई में लखनऊ के शहबाज के ससुर मोइद अहमद के अलावां प्रदेश भर से आतंकवाद के नाम पर पीड़ित व दंगा पीड़ित मौजूद थे.

-एजेन्सी