दलबदल कानून क्या है जिससे नए गुट की मान्यता पा सकते हैं महाराष्ट्र में शिवसेना के विद्रोही विधायक?
दलबदल कानून क्या है जिससे नए गुट की मान्यता पा सकते हैं महाराष्ट्र में शिवसेना के विद्रोही विधायक?
महाराष्ट्र में सियासी स्थिति ने जो घुमाव लिया है, उसमें उद्धव ठाकरे सरकार का गिरना तो अब करीब तय हो चुका है. शिवसेना के ही एक मंत्री एकनाथ सिंदे ने राज्य सरकार के कुछ मंत्रियों और विधायकों के साथ मिलकर ना केवल पार्टी से विद्रोह कर दिया बल्कि नया गुट बनाने का भी दावा किया.
शुरू में उनके साथ 27 विधायक बताए जा रहे थे लेकिन कुछ और विधायकों के उनके साथ मिल जाने से अब वो दावा कर रहे हैं कि अब उनके साथ पार्टी से टूटकर कर 40 विधायक हैं. सबसे पहला सवाल यही है कि क्या दलबदल कानून के तहत वो अयोग्य ठहराए जा सकते हैं या फिर उन्हें नए गुट की मान्यता मिल जाएगी.
फिलहाल महाराष्ट्र विधानसभा में 288 सदस्य हैं. जिसमें शिवसेना के पास 55 विधायक हैं. राष्ट्रवादी क्रांति पार्टी के पास 53 विधायक तो कांग्रेस की ताकत 40 विधायकों की है. इन तीनों पार्टियों ने मिलकर उद्धव ठाकरे की अगुवाई में सरकार बनाई थी. लेकिन पिछले इस सरकार में शामिल शिवसेना के विधायकों ने बागी तेवर दिखाए तो स्थिति अजीब हो गई. फिलहाल जो स्थिति है, उसमें अगर कोई सियासी चमत्कार नहीं हो तो उद्धव ठाकरे सरकार का गिरना करीब तय है.
दरअसल ये कानून तब लागू होता है कि जबकि निर्वाचित सदस्यों द्वारा पार्टी छोड़ने या पार्टी व्हिप का उल्लंघन करने पर उनकी सदस्यता रद्द हो जाती है.
भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची को दल बदल विरोधी कानून कहा जाता है. इसे 1985 में 52वें संशोधन के साथ संविधान में शामिल किया गया था.
दल बदल कानून की जरूरत तब महसूस हुई जब राजनीतिक लाभ के लिए लगातार सदस्यों को बगैर सोचे समझे दल की अदला बदली करते हुए देखा जाने लगा.अवसरवादिता और राजनीतिक अस्थिरता बहुत ज्यादा बढ़ गई थी, साथ ही जनादेश की अनदेखी भी होने लगी. लिहाजा ऐसा कानून बनाया गया कि इस पर रोक लग पाए.
इस कानून के तहत – कोई सदस्य सदन में पार्टी व्हिप के विरुद्ध मतदान करे/ यदि कोई सदस्य स्वेच्छा से त्यागपत्र दे/ कोई निर्दलीय, चुनाव के बाद किसी दल में चला जाए/ यदि मनोनीत सदस्य कोई दल ज्वाइन कर ले तो उसकी सदस्यता जाएगी.