भाजपा सरकार की दोगली बुलडोजर राजनीति की हो रही है बड़ी आलोचना

भाजपा सरकार की दोगली बुलडोजर राजनीति की हो रही है बड़ी आलोचना

भाजपा सरकार की दोगली बुलडोजर राजनीति की हो रही है बड़ी आलोचना

रिपोर्ट : मोइन अहमद खान:

उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार ने बुलडोजर राजनीति का इजात किया है. आरोपियों को सजा देने के लिए उनकी प्रॉपर्टी पर बुलडोजर चलाया जाता है. अवैध निर्माण पर भी बुलडोजर की कार्रवाई हो रही है. हाल ही में नूपुर के बयान पर हुए हिंसक प्रदर्शन के बाद भी उत्तर प्रदेश में बुलडोजर ने अपना काम किया है. अब राजनीति के लिहाज से जिसे सख्त फैसला माना जा रहा है, कानून के तराजू पर वो कहां ठहरता है? बुलडोजर कार्रवाई सही है या फिर गलत? 

बुलडोजर चलाना सही या गलत?

आजतक ने कई पूर्व जज और कानून के जानकारों से इस मुद्दे पर बात की. उनसे समझने का प्रयास रहा कि आखिर कानून की नजर में बुलडोजर कार्रवाई कहां खड़ी होती है. इस बारे में जब पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया आर एम लोधा से बात की गई तो उन्होंने जोर देकर कहा कि कानून के तहत एक पूरी प्रक्रिया का पालन होना जरूरी है. वे कहते हैं कि अगर किसी ने कोई जुर्म किया है, इसका ये मतलब नहीं है कि उसकी प्रॉपर्टी को तोड़ दिया जाए. अगर उसी प्रॉपर्टी को लेकर ही कोई विवाद चल रहा है, तो भी कोर्ट से एक ऑडर लाना होता है, उस शख्स को समय पर नोटिस भी देना होता है. लेकिन बिना किसी नोटिस के अगर कैसी कोई कार्रवाई की जाएगी, तो कानून की नजरों में उसकी कोई वैधता नहीं.

आर एम लोधा ने ये भी स्पष्ट कर दिया है कि अगर किसी शख्स ने जघन्य अपराध भी किया हो, सरकार को ये हक नहीं मिल जाता कि उसकी प्रॉपर्टी को तोड़ा जाए. किसी भी आरोपी को सजा देने के लिए कोर्ट को आदेश जारी करना होता है. वैसे इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जज गोविंद माथुर भी ऐसा ही मानते हैं. उनकी नजरों में भी किसी आरोपी के खिलाफ कानून के मुताबिक ही कोई कार्रवाई की जा सकती है. जब तक उसका गुनाह साबित नहीं होता, किसी भी तरह की कार्रवाई करना तर्कसंगत नहीं है. वे बताते हैं कि अगर कोई आरोपी है तो उसके खिलाफ Crpc के तहत कार्रवाई की जाएगी या फिर IPC के अंतर्गत भी एक्शन लिया जा सकता है. लेकिन जब तक गुनाह साबित नहीं हो जाता, कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती.

आरोपी की प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचा सकते?

जब उनसे सवाल पूछा गया कि क्या एक विशेष समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है, इस पर उनका सिर्फ इतना कहना था कि उन्हें प्रयागराज प्रशासन की नीयत को लेकर ज्यादा नहीं पता है. लेकिन जिस समय ये कार्रवाई की गई, ऐसी धारणा बनती है कि एक समुदाय के खिलाफ एक्शन लिया जा रहा है. इस बुलडोजर विवाद पर पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज चेलमेश्वर ने भी अपने विचार रखे हैं. उनके मुताबिक सिर्फ आरोपी होने पर किसी की प्रॉपर्टी को नहीं तोड़ा जा सकता है. वे बताते हैं कि कानून की एक प्रक्रिया होती है, उसका हर मामले में पालन होना जरूरी है. वैसे भी सिर्फ एक शिकायत होने पर किसी की प्रॉपर्टी को नुकसान नहीं पहुंचा सकते हैं. अगर कोई कार्रवाई करनी भी है तो पहले उस इलाके की नगरपालिका के कानूनों को समझना होगा, ये भी देखना होगा कि आरोपी को पहले कोई नोटिस दिया गया या नहीं. अगर कोई नोटिस नहीं दिया जाता तो उसके खिलाफ कोर्ट भी जाया जा सकता है.

इस बारे में दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व जज एस एन ढींगरा और राजीव सहाय एंडला ने भी बड़ा बयान दिया है. जस्टिस ढींगरा तो मानते हैं कि अगर अवैध निर्माण किया गया है तो उसका हटना जरूरी है. लेकिन अगर वो कार्रवाई हो रही है तो पूरी प्रक्रिया का पालन करना भी प्रशासन की जिम्मेदारी है. जस्टिस एंडला तो यहां तक कहते हैं कि ऐसी कार्रवाई करते वक्त 'पिक एंड चूज' की पॉलिसी नहीं चल सकती है. सिर्फ इसलिए कि किसी ने गुनाह किया है, उसकी प्रॉपर्टी को नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता. उन्होंने इस बात की भी जानकारी दी है कि अगर पब्लिक लैंड पर अवैध निर्माण किया गया है तो उसे बिना नोटिस भी हटाया जा सकता है. वहीं अगर किसी ने सरकारी जमीन पर कब्जा किया है और कई सालों से कोई कार्रवाई नहीं हुई, ऐसे मामलों में भी आरोपी इस बात का रोना नहीं रो सकता कि उसके खिलाफ इसलिए कार्रवाई की गई क्योंकि उसने सरकार के खिलाफ बोला.