सैय्यदना शेख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी (क्यूएसए) का उर्स मुबारक 

सैय्यदना शेख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी (क्यूएसए) का उर्स मुबारक 

हम सभी को सैय्यदी ग़ौसे आज़म अब्दुल क़ादिर जीलानी (कद्दास अल्लाहू सिर्राहु)  की ग्यारवी शरीफ और उर्स (गुजरने का वार्षिक स्मरणोत्सव) की मुबारकबादी दे रहे हैं।  उन्हें इस्लामी इतिहास में सबसे महान सूफी संत (वली) माना जाता है।

हज़रत ग़ौस पाक का जन्म 470 A.H में ईरान में रमज़ान के महीने में हुआ था।  आपकी वालिदा ने फरमाया कि आपने बचपन में भी रमज़ान में दिन में कभी खाना नहीं खाया।  जब आप 18 वर्ष के थे, तब आप अपनी वालदा की इजाज़त से बग़दाद में विभिन्न इस्लामी विज्ञानों की पढ़ाई करने चले गए।  आपने शिद्दत से पढ़ाई करी और जल्द ही सभी विभिन्न इस्लामी विज्ञानों में महारत हासिल कर ली।

हालाँकि, हज़रत ग़ौस पाक ने एक छात्र के रूप में भी महान आध्यात्मिक प्रथाओं को बनाए रखा और अपनी सच्चाई और दान के लिए जाने जाते थे। आपने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद 25 साल तक खुद को पूरी तरह से आध्यात्मिक अभ्यास के लिए समर्पित कर दिया, जबकि उनमें से 12 साल एकांत में बिताए गए। आपने अपनी सुबह की नमाज़ (फज्र) रात की नमाज़ (इशा) के वज़ू से पढ़ी।  आप एक रात में पूरे क़ुरान शरीफ़ को पढ़ लेते थे। आपने बग़दाद के बाहर के रेगिस्तानों की यात्रा की और वर्षों तक पत्तों पर उपवास किया।

50 वर्ष की आयु में हज़रत ग़ौस पाक बग़दाद लौट आए और तबलीग़ करना शुरू किया।  वह हर हफ्ते 3 उपदेश (खुतबाह) देते थे, जिसमें औलिया, शुयुख़ (विद्वान) और जिन्न सहित हज़ारो लोग शामिल होते थे। आपको मुहिउद्दीन (विश्वास को पुनर्जीवित करने वाला) का लक़ब दिया गया।

आपके दिन की शुरुआत सुबह से दोपहर तक विभिन्न इस्लामी विज्ञानों पर पढ़ाने से होती।  दोपहर के बाद, आप लोगों के धार्मिक सवालों के जवाब देते थे।  इसके बाद आप शाम से पहले गरीबों में भोजन बांटते थे। शाम को अपने परिवार के साथ रात के खाने के लिए बैठते, क्योंकि आप पूरे साल दिन में रोज़ा रखते थे।  लेकिन हर खाने से पहले आपकी एक आदत थी की आप उन सब को खाने का बुलावा देते जो कि ज़रूरतमंद हो।  रात के समय आप अपने कमरे में जाकर पूरी रात अल्लाह की इबादत में गुज़ारते। आपकी अपनी पूरी ज़िन्दगी ख़िदमत ए खल्क़ और अल्लाह के लिए वक़्फ कर दी।

91 साल कि उम्र में 561 हिजरी में रबी अल-सानी के 11वें दिन  आपका विसाल हो गया। बग़दाद, इराक़ में आपकी दरगाह शरीफ़ से फैज़ और बरकात हासिल करने के लिए दुनिया भर से लाखों लोग आते हैं।

दुआ:

क़ादिर-ए-मुतलक़ है तू अपनी इनायत हम सब पे रख,
ग़ौसुल आज़म शाह ए जीलान क़ुबुल औलिया के वास्ते

सिलसिला-ए-आलिया ख़ुशहालिया !!

Syed afzal Ali shah Maududi. 

Editor cum Bureau chief. 

Lucknow