मदरसों के बच्चों ने दुष्प्रचारकों के मुंह पर मारा तमाचा

मदरसों के बच्चों ने दुष्प्रचारकों के मुंह पर मारा तमाचा

प्रिय पाठको, यह हम सब जानते हैं कि समाज सुधारक राजा राम मोहन राय, लेखक मुंशी प्रेमचंद और भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने मदरसों से अपनी बेसिक शिक्षा प्राप्त की. इनके अलावा भारत के पूर्व राश्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा, डाॅ. एपीजे कलाम आजाद ने भी मदरसे से ही अपनी प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की. मदरसों में अब दीनी शिक्षा के अलावा दुनियावी शिक्षा भी दी जा रही है. कई मदरसों में एनसीआरटी के विषयों को पढ़ाए जाते हैं. इसके अलावा अंग्रेजी, कम्प्यूटर तथा हिन्दी भाषा भी पढ़ाई जाती है. मदरसों और मस्जिदों को बदनाम करने का सिलसिला नहीं रूक रहा है. कहीं मदरसों में राष्ट्रगान अनिवार्य कर रहे हैं तो कहीं मदरसों को आतंकवादियों का अड्डा बता कर तंग किया जा रहा है. जहां तक हम जानते हैं, मदरसों में कुछ बच्चे स्थानीय होते हैं वे सुबह फजर की नमाज से पहले एक घंटा और असर की नमाज के बाद मग्रिब तक एक घंटे की क्लास लेते हैं. जो बच्चे जल्दी कुरान को कंठस्थ करना चाहते हैं वे अपना समय बढ़ाते हैं और वे सुबह 3 घंटे और शाम 3 घंटे अपनी पढ़ाई को देते हैं. इस तरह यहां नमाज और कुरान के अलावा कुछ नही होता. जहां तक जमाअत के आने जाने का सवाल है तो वे 2 या 3 दिन से ज्यादा एक जगह नहीं रूकते हैं. दीन सिखना और सिखाना और आखिरत की तैयारी करना इनका मुख्य उद्देश्य होता है. अब जब देश की धारा में मदरसे जुड़ कर देश के विकास में योगदान दे रहे हैं तो फिर क्यूं मदरसों को संदेह की नज़र से देखा जा रहा है.
इस साल़ मदरसों के लिए काफी राहत और खुशी की बात है कि उनके हाफिज-ए-कुरान और आलिम छात्र-छात्राओं ने मेडिकल की प्रतिष्ठित परीक्षा नीट में सफलता प्राप्त की है.

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार एमबीबीएस की डिग्री हासिल करने के लिए नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेस टेस्ट (नीट) की इस परीक्षा में लगभग 1200 मुस्लिम उम्मीदवारों ने पास किया है. 500 से अधिक उम्मीदवार अल-अमीन मिशन की पश्चिम बंगाल में फैली 70 शाखाओं से हैं, जबकि 250 से अधिक उम्मीदवार अजमल फाउंडेशन के कोचिंग संस्थान से हैं और लगभग 450 शाहीन समूह के संस्थानों से हैं। इन 1200 बच्चों में से ज्यादातर छात्र आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि से हैं. उनमें से कई मदरसों में पढ़े हैं और कुछ हाफिज भी हैं जिन्होंने यह सफलता हासिल की है. दरअसल, इस्लामी शिक्षा के केंद्र बने मदरसों को लेकर देश भर में नीची सोच वाले और गोदी मीडिया द्वारा कई तरह की गलत फहमी फैलाई जाती रही हैं कि ये आतंकवाद की फैक्ट्री हैं. केंद्र व विभिन्न प्रदेशों की भारतीय जनता पार्टी की सरकारें देश भर में मदरसों और मस्जिदों को टारगेट किए हुए हैं. 
यह कोई पहला मौका नहीं है, जब दीनी तालीम हासिल करने वाले छात्राओं ने किसी प्रतियोगी परीक्षा में सफलता हासिल की है. इससे पहले भी मेडिकल, इंजीनियरिंग, यूपीएससी, सिविल तथा अन्य परीक्षाओं में सफलता पाई है. मुस्लिम छात्र छात्राओं की संख्या और बढ़े और देश के सभी संस्थानों में उनकी भागीदारी और हो इसके लिए मदरसे जैसी पढ़ाई को अमल में लाकर अच्छा किया जा सकता है. हम पहले जमाने में गुरूकुल की बात को याद करें तो यहां से पढ़कर विद्वान निकलते थे और वे पूरे देश और दुनिया में जाकर अच्छे भारतीय संस्कार को पढ़ाते थे. आज की पढ़ाई को ज्यादातर इंटरनेट ने ले लिया है. अब अगर टीचर गुरू न बन सका तो बच्चा कैसे अपना भविष्य बना पाऐगा. 
आज देश में कुप्रशासन है, राजनीति एक तरह का धंधा बन गया है जो लेन देन पर टिक गया है. नेता गण पार्टी विशेष के न रहकर सरकारी दलालों के बन कर रह गए हैं. आज सभी क्षेत्रों पर दलालों का कब्जा है. इसलिए असुरक्षा का माहौल है. अल्पसंख्यकों के शिक्षण और धार्मिक स्थानों पर कुछ देशद्रोही ताकातों ने हमेशा गंदा किया है और इससे भय और असुरक्षा का माहौल बनाने का प्रयास किया गया है जिसका सीधा असर पूरे देश के विकास पर पड़ता है. आज धर्म के नाम पर देश में अलग अलग तरह का खेल होता रहा है. मस्जिदों से लाउडस्पिकर हटाना, बुर्का, मदरसों में  राष्ट्रगान, और कई ऐसे बेमतलब के विशय हैं जिस पर देशवासियों को उलझाकर रखा हुआ है. मुसलमान आज जो प्रेक्टिस कर रहा है वह हमेशा से करता आ रहा है फिर झगड़ा क्यूं. हर मुसलमान के लिए नमाज और कुरान अनिवार्य है जिसे सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ाया जा सकता, इसलिए मदरसे जरूरी है.
आओ देश का विकास करने सुशासन व्यवस्था लाएं, 
धन्यवाद.